Tuesday, November 3, 2020

I. राव चन्द्रसेन

I. राव चन्द्रसेन
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इनका कार्यकाल 1562-1581 तक था इनका समकालीन मुग़ल शासक अकबर था।
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राव चन्द्रसेन के पिता राव मालदेव एवं माता स्वरूपदेवी थी
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राव चन्द्रसेन के दो बड़े भाई थेरामसिंह एवं उदयसिंह
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राव मालदेव के सबसे छोटे पुत्र होते हुए भी राव चन्द्रसेन मारवाड़ के शासक बने थे
- राव चन्द्रसेन का राज्याभिषेक 1562 . में मेहरानगढ़ दुर्ग में हुआ था
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राव चन्द्रसेन के उपनाम – ‘मारवाड़ का प्रताप’ , ‘प्रताप का अग्रगामी’ , ‘प्रताप का पथ-प्रदर्शक’ , ‘भुला-बिसरा राजा
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अकबर से स्वतंत्रता की लड़ाई सर्वप्रथम राजस्थान में राव चन्द्रसेन ने लड़ी बाद में महाराणा प्रताप सुरताण देवड़ा (सिरोही) ने की थी
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रामसिंहराव मालदेव ने नाडोल (पाली) की जागीर दी थी लेकिन असंतुष्ट होकर मेवाड़ के शासक महाराणा उदयसिंह के दरबार में चले गये रामसिंह ने मेवाड़ की सेना लेकर राव चन्द्रसेन पर आक्रमण किया परन्तु इनकी पराजय हुई और बाद में अकबर की सेवा में आगरा चले गये।
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मोटा राजा उदयसिंहइन्हें फलौदी की जागीर प्राप्त हुई थी परन्तु इन्होने असंतुष्ट होकर राव चन्द्रसेन से 1562 . मेंलोहावट का युद्धकिया जिसमें इनकी पराजय हुई इस युद्ध में हार के पश्चात उदयसिंह अकबर की सेवा में चले गये।
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इस समय अजमेर/नागौर का शाही हाकिम/सूबेदार हुसैन कुली बेग था अकबर ने हुसैन कुली को जोधपुर पर आक्रमण करके मेहरानगढ़ दुर्ग छीनने का आदेश दिया। युद्ध के दौरान राव चन्द्रसेन परिवार सहित भाद्राजण (जालौर) की तरफ चले गये 1564 . में जोधपुर किले पर मुग़ल सेना का अधिकार हो गया। इसके कुछ समय बाद चन्द्रसेन सिवाणा (बाड़मेर) चले गये।
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नागौर दरबारनागौर दुर्ग में नवम्बर 1570 . में अकबर द्वारा नागौर दरबार लगाया गया था
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यह दरबार आमेर के शासक भारमल (बिहारीमल )की सलाह पर लगाया गया।
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इस दरबार का उद्देश्य अकाल राहत कार्य था। अकाल राहत कार्य के दौरान अकबर ने नागौर दुर्ग में शुक्र तालाब का निर्माण करवाया।
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इस दरबार को मारवाड़ के शासकों की परतंत्रता की अंतिम कड़ी माना जाता हैं।
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वहां कई राजपूत राजाओं ने उपस्थित होकर अकबर की अधीनता स्वीकार की थी।
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जैसलमेर के राजा राव हरराय ने इस दरबार में अपनी पुत्री का विवाह अकबर के साथ कर दिया एवं अधीनता स्वीकार की। भगवंतदास या भगवानदास ने प्रयास करके राव हरराय को अकबर की अधीनता स्वीकार करवाई।
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बीकानेर के राव कल्याणमल अपने पुत्र पृथ्वीराज एवं रायसिंह सहित नागौर दरबार में उपस्थित हुए तथा अकबर की अधीनता स्वीकार की।
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राव चन्द्रसेन भी भाद्राजण से नागौर दरबार में आये थे परन्तु अन्य राजाओं की तरह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की एवं चुपचाप वहां से भाद्राजण चले गये।
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अबुल फजल द्वारा रचित ग्रन्थअकबरनामामें लिखा हैं की राव चन्द्रसेन भाद्राजण से इस दरबार में आये थे और अकबर की अधीनता स्वीकार भी की लेकिन बिना बताये ही वापस भाद्राजण चले गये।
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मारवाड़ के इतिहासकारों (मुहणौत नैणसी,दयालदास) के अनुसारराव चन्द्रसेन भाद्राजण से आये थे। राव चन्द्रसेन अकबर की नीतियों को परखने के लिए इस दरबार में आये थे। राव चन्द्रसेन बिना बताये ही वापस भाद्राजण चले गये।
                                                                                          
Part –  II
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राव चन्द्रसेन जब बिना बताये जब भाद्राजण चले गये तो अकबर कोध्रित हुए और 1570 . भाद्राजण पर आक्रमण करवाया।
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इन आक्रमणों में प्रथम जलाल खां एवं द्वितीय आक्रमण अब्दुल रहीम खान--खाना ने किया था। इन आक्रमणों के फलस्वरूप भाद्राजण पर मुग़ल सेना का अधिकार हो गया एवं चन्द्रसेन सिवाणा (बाड़मेर) चले गये।
- अकबर ने 30 अक्टूबर 1572 में बीकानेर के शासक कल्याणमल के पुत्र कुँवर रायसिंह को जोधपु का सूबेदार नियुक्त किया
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सिवाणा युद्ध1572 . में अकबर ने सिवाणा दुर्ग पर अधिकार हेतु एक मजबूत सेना का गठन किया।
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इसमें शाह कुली खां, कुंवर रायसिंह, केशवदास मेडतिया, जगतराय आदि सेनानायक थे।
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यह सेना पहले सोजत की तरफ गई और वहां पर इसने चन्द्रसेन के भतीजे कल्ला को हराया तथा इसके बाद सिवाणा की ओर बढ़ गई।
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राव चन्द्रसेन अपने सेनापति राठौड़ पत्ता को किले की रक्षा का भार सौंपकर पीपलोद एवं काणुजा की पहाड़ियों की तरफ चले गये।
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शाही सेना इस युद्ध में असफल रही।
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1574 . में अकबर ने सिवाणा किले पर अधिकार करने हेतु जलाल खां को भेजा परन्तु इस युद्ध में वह मारा गया।
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1576 . अकबर ने राव चन्द्रसेन को अधीन करने के लिए  शाहबाज खां को सिवाणा दुर्ग पर आक्रमण करने के लिए भेजा लेकिन चन्द्रसेन सिवाणा दुर्ग को छोड़कर सारण की पहाड़ियों पर चले गये। शाहबाज खां चन्द्रसेन को पकड़ने में असफल रहा।
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परन्तु शाहबाज खां ने 1576 . में सिवाणा दुर्ग को जीत लिया
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सिवाणा दुर्ग को मारवाड़ के शासकों की संकटकालीन क्षरण स्थली कहा जाता हैं।
- चन्द्रसेन सारण की पहाड़ियों के पश्चात छप्पन की पहाड़ियों पर चले गये परन्तु वे पुनः सारण की पहाड़ी पर गये।
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सारण की पहाड़ियों में स्थित गाँवसचियाप गाँवमें डूमडा के जागीरदार बैसलदेव राठौड़ ने राव चन्द्रसेन को भोजन के साथ विष दे दिया था इसी कारण सचियाप गाँव (पाली) में 11 जनवरी 1581 में इनका देहांत हो गया।
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अकबर ने 1581 . में राव चन्द्रसेन की मृत्यु के बाद मारवाड़ को खालसा घोषित कर दिया जो 1583 . तक रहा।
- छापामार युद्ध प्रणाली का महत्व स्थापित करने में मेवाड़ शासक महाराणा उदयसिंह के बाद राव चन्द्रसेन द्वितीय शासक थे।
- राव चन्द्रसेन प्रथम ऐसे शासक थे जिन्होंने रणनिति में दुर्ग के स्थान पर जंगल और पहाड़ी क्षेत्र को अधिक महत्व दिया।